यह मौसम का जादू है मितवा
Wednesday, June 11, 2008
पिछले कुछ महीनों से मैंने इस ब्लॉग पर कुछ लिखा नहीं , मेरा मतलब है कुछ व्यागतिगत।
और हिन्दी में तो बिल्कुल नहीं लिखा ।
पिछला हफ्ता काफ़ी मसरूफ रहा । अब भी हालात कुछ अच्छे नहीं हैं , पर आज मौसम से जादू कर दिया ।
यहाँ charlotte ( संधि विछेद करें तो बनता है चार लोटे) में गर्मी शुरू हो गई है , दिन भर तापमान ९० - १०० डिग्रीफारेनहाइट रहता है , आज शाम अचानक बादल घुमड़ आए और इस समय काफ़ी तेज बरसात हो रही है । ऐसे ही मौसम ने मुझे प्रेरित किया की मैं काम छोड़ कर बाहर बालकनी मैं बैठ कर मौसम का आनंद लूँ , ऐसे सुहाना मौसम कम ही देखने को मिलता है , तो जनाब आलम यह है की मैं अभी बालकनी मैं हूँ , ब्लॉग लिख रहा हूँ और रोमांटिक गाने सुन रहा हूँ - "जब कोई बात बिगड़ जाए ... , कुछ तुम सोचो कुछ हम सोचें ... , कहना है -२ आजतुमसे ..." इत्यादी ।
मेरे कुछ दोस्त हिन्दी में ब्लॉग लिख रहे तो मैंने सोचा चलो हम भी थोड़ा रूमानी हो जाएँ ।
अरे याद आया मैं यह फ़िल्म ( आओ थोड़ा रूमानी हो जाएँ) भी ढूँढ रहा हूँ इंटरनेट पर , यह भी तो बारिश पर ही थी ना ।
मैंने यह गौर किया है की मेरा मूड मौसम से भी प्रभावित होता है ( नयी बात नहीं है , सबका होता है) । जब मैंने देहरादून छोडा और नॉएडा आया कॉलेज में, तो मौसम से बहुत निराश हुआ , उस मौसम की आदत नहीं थी , फिर एक दिन मेरे दिन फिरे और मुझे वैसा मौसम देखने को मिला जैसे देहरादून में अक्सर होता था , घंने बादल , ठंडी हवा पर बारिश नहीं , ऐसा मौसम हम दोस्तों के बीच " डडू वाला मौसम " के नाम से जाना गया। उस दिन मैंने कॉलेज में पढ़ाई नहीं करी , बस बाहर ही घूमता रहा।
इन दिनों मैं हरिवंश राय बच्चन की मधुबाला, ना कि मधुशाला (बहुत लोगों को नहीं पता पर मधुबाला भी इन की एक रचना है) पढ़ रहा हूँ , पर मम्मी चिंता मत करो मैंने पीनी शुरू नहीं करी ।
बस यही ताज़ा ख़बर है दुनिया के इस कोने से , आगे और लिखूंगा अगर कुछ बताने लायक हुआ (अब यह मत कहना बताने लायक तो यह भी नहीं था)
तो जी मैं चला चाय के एक अदद प्याले की तलाश में (मेरे लिए तो यह ही मय के बराबर है )
अब मुझे नहीं पता अदद शब्द का अर्थ क्या है पर काफ़ी बार सुना है और यहाँ पर उपयोग करना उचित लगा ।
और इंटरनेट पर अदद शब्द का अर्थ ढूढने पर नहीं मिला पर यह शैर ज़रूर मिलातुम काली हो ये फरीश्तों कि भूल है।
वो तिल लगा रहे थे कि स्याही बिख़र गयी।
शरद जोशी की एक कविता बहुत पसंद आई मुझे , शीर्षक है हिरोइन नहा रही है ।
इंटरनेट एक्सप्लोरर पर देखे , फायरफॉक्स पर शायद न खुले
मैं इनका बहुत बड़ा पंखा हूँ, इनकी अन्ये रचनायें भी देखियेगा।
Posted by :ubuntu at 6:36:00 PM
Labels: retro
क्या बात है!!! आज कितने दिनों के बाद हिन्दी में कुछ पढने को मिला. किसी ने बड़ा सही कहा है...One can not love in a foreign language and can not fight in a foreign language.
थोडी वर्तनी की गलतियाँ हैं उदाहरण के तौर पर मधुशाला का मधुबाला.बाकि पढ़के अच्छा लगा. आगे भी लिखते रहिएगा.
हिमांशु शायद यह बहुत लोगों को ज्ञात नहीं है पर मधुबाला भी हरिवंश राय बच्चन की एक रचना है । यह बात अलग है की मधुशाला अधिक प्रसिद्ध हुई
ईश्वर से हमारी यही प्रार्थना है कि आप पर मौसम का जादू ऐसे ही चलता रहे और आप ऐसी ही मजेदार पोस्ट हमें पढवाते रहें।
क्या बात है! भई वाह!
वैसे यहाँ अपने हिंदुस्तान में भी मानसून ने अपने पैर जमा लिए हैं... और अधिकतर प्रांतों में कुछ ऐसा ही मौसम है | लेकिन यहाँ जो मिटटी कि खुशबू आती है, वो वहाँ नहीं आती होगी न? वहाँ तो मिटटी है ही नहीं !
एक और बात: वो मौसम डुल्लू वाला मौसम है, न कि डडू वाला :)
और शायरी ने तो हिला के रख दिया ...
haan jolly..dullu wala tha..daddu walan nahi ;-) Aur acha laga mausam ki description padke..pad u need time to enjoy such a weather..bangalore mein to aksar aisa mausam ho jata hai..
Wah, mazza aa gaya :)
Waise mere paas "Thoda Roomani Ho Jayein" ki CDs hain. Agar abhi tak nahi mili to mujhe ik mail bhej do, main apne server pe upload karke link bhej dunga :)
Oh btw, the sher reminds me of a beautiful sher by Ghulam Farid. I'll post on my Dervesh blog and provide links.
Yeh raha woh sher jiski hum baat kar rahe the.
Humne puri imaandari se ubhavarth vyakt karne ka prayas kiya hai. :)