I wish you would notice
1 year ago
यह पंक्तियाँ मैंने प्रेमचंद के एक उपन्यास मंगलसूत्र में पढ़ी थी ।
"अब जीवन का अँधेरा पहलु देखना चाहती हूँ ,जहाँ त्याग है ,रुदन है,उत्सर्ग है।
सम्भव है उस जीवन से मुझे बहुत जल्दी घृणा हो जाए। श्रम और त्याग का
जीवन ही मुझे अब तथ्य जान पड़ता है। आज जो समाज और देश की दूषित
अवस्था है सहयोग करना मेरे लिए किसी जूनून से कम नही है। मुझे
बेकाम -धंदे के इतने आराम से रहने क्या अधिकार है? मगर ये सब जान
के भी मुझमे कर्म की शक्ति नही है.इस भोग-विलास के जीवन नेमुझे कर्महीन
बना डाला है.बुद्धि का मन पर कोई नियंत्रण नही है।
मेरी इच्छाशक्ति बेजान हो गई है।"
Posted by :ubuntu at 2:02:00 AM
Labels: premchand